कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से होती है। अमृत पाने के लिए देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। जब अमृत कलश निकला, तो इसे लेकर देवताओं और असुरों में संघर्ष शुरू हो गया। अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को भ्रमित किया और अमृत कलश लेकर भाग गए।
भागते समय अमृत की बूंदें चार पवित्र स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। माना जाता है कि इन स्थानों पर स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए हर 12 वर्ष में इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी हिस्सा है।